गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

युगनद्ध -3: आ रही होली

सड़क पर बिछे पत्ते
हुलस हवा खड़काय बोली
आ रही होली।


पुरा' बसन उतार दी
फुनगियाँ उगने लगीं
शोख हो गई, न भोली
धरा गा रही होली।


रस भरे अँग अंग अंगना
हरसाय सहला पवन सजना 
भर भर उछाह उठन ओढ़ी 
सजी धानी छींट चोली। 


शहर गाँव चौरा' तिराहे
लोग बेशरम बाग बउराए
साजते लकड़ी की डोली 
हो फाग आग युगनद्ध होली । 

15 टिप्‍पणियां:

  1. आयो री होली आली .....कुछ ऐसा उधर की दुनिया से होता नही दिख रहा .....
    मगर ऐसे निरंतर सत्प्रयासों से निश्चित ही बर्फ पिघलेगी .....

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  2. होली अच्छी नहीं लगती मुझे इसलिए कोई टिप्पणी करने से फायदा नहीं ...वैसे भी मेरी टिप्पणी आपको समझ आती नहीं है ....:):) ...अब ये भी एक निर्मल हास्य ही है ...गंभीरता से नहीं ले ....!!

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  3. एक योगी जो HAPPY NEW YEAR कहने पर करीब-करीब भड़क उठता हो..देखो उल्लास और शृंगार के भारतीय-पर्व पर इसका उत्साह देखते ही बनाता है..!
    राव साहब..! आपकी सतत साधना/प्रयोगशीलता से अभिभूत होकर 'योगी' शब्द प्रयोग किया है..!(कोई निर्मल हास्य नहीं किया है.)

    होली की जो रंगीन दुन्दभी आपने बजाई है..रंग छा गया है अपने ऊपर भी..!

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  4. मोरी भरि द गगरिया हो स्याम कहें ब्रजनाssरीss

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  5. फागुन में फगुआमय भाव न हो तो और क्या हो...?
    बहुत खूब ।
    आभार..!

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  6. होरी खेलूं मैं गोरी..
    कान्हा करत बरजोरी
    हमरी भीजी अनारी सारी
    काहे मारत पिचकारी..
    अरे भाई हम ता एकदम उलटबाँसी है..
    होली हमरा सबसे प्रिय त्यौहार..
    ई हम करते हैं स्वीकार
    गिरिजेश बाबू मचाये हैं
    होली की हुडदंग
    काव्य रंग की छटा
    देख हुए हम दंग..
    होलिका दहन..ब्लाग पर ..!!!
    अनुपम ...!!

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  7. मुझमें तो इन 'स्थितियों ' में कविता नहीं सुझाती . रिझाती , अतः
    गद्य में ही कहूँगा --- ' होलियाइए हच्च्क्के ' ... आभार !!!

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  8. शहर गाँव चौरा' तिराहे
    लोग बेशरम बाग बउराए
    साजते लकड़ी की डोली
    हो फाग आग युगनद्ध होली ।

    बेहतरीन !

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  9. लगता है होली का आगमन हो गया ........... बहुत सुंदर रंग बिखेर दिए आपने इस होली के शुभारंभ पर .......

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  10. ई का कह डाले अमरेन्द्र भाई ! ऐसेही मौके पर तौ कविता निकल पड़त हौ !

    गति निरख रहा हूँ । होली तो आ ही गई !

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