शुक्रवार, 15 मार्च 2013

वक़्त वक़्त की बात

वक़्त वक़्त की बात 
कहीं से उठता है धुँआ
यूँ ही ढाँढ़स देने को 
जला दी गयी घुन खाई लकड़ियों से।

अन्नपूर्णा के खाली भंडार 
बरतनों में बजते हैं 
भूख बुझती नहीं
पानी पेट मरोड़ता है।

बुझती है आँसुओं से आग
पेट की,मन की -
कवि रचता है
बड़वाग्नि उपमा उपमान।

रविवार, 10 मार्च 2013

खेलें मसाने में होरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी


खेलें मसाने में होरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी 
भूत पिशाच बटोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी।  
लखि सुन्दर फागुनी छटा के
मन से रंग गुलाल हटा के
चिता भस्म भर झोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी।
गोप न गोपी श्याम न राधा
ना कोई रोक ना कवनो बाधा 
अरे ना साजन ना गोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी  
नाचत गावत डमरूधारी 
छोड़े सर्प गरल पिचकारी 
पीटें प्रेत थपोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी। 
भूतनाथ की मंगल होरी 
देखि सिहायें बिरज की छोरी 
धन धन नाथ अघोरी, दिगम्बर खेलें मसाने में होरी।  

रविवार, 3 मार्च 2013

नींद और देह



निंदिया लपक लड़ी!
पलकें झपक परीं
डालियाँ लचक परीं।