शनिवार, 31 मई 2014

विविधा

(1)
स्थगित किया चूमना हमने
टूटने तक खिंच चुकी धड़कन
न झेल पाती नम दहकन!

(2)
हवन परोपकार के
तुम कुंड मैं समिधा
दहन अगन जलन धूम संसार के।

(3)
उपमा
रूपक नहीं आते मुझे
न जानता हूँ चाँद तारों की ऊँचाइयों को

बस तुम्हारी चाय के साथ पारले जी होना चाहता हूँ।  

(4)
आँसू काजल से लिखी पाती
प्रतिशोध वश राख हुई
पत्थर पर रह गया तुम्हारा नाम भीगा।


(5)
पहले ग्रीटिंग कार्ड में सूखी पंखुड़ियाँ
टूट कर बिखर गईं रसोई में
तुमने सराहा मेरा जूड़े में लगाना घेंवड़े का फूल।   

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~गिरिजेश राव~

मंगलवार, 20 मई 2014

वासना याचना

प्रशांत मुख उभरे
लाल होठ
साँझ शांत सर
निमलित रक्तपुंडरीक 
कर लूँ आचमन
निशापूजन हेतु?


गुरुवार, 1 मई 2014

अधिकार

बनाये नहीं जाते
दिये नहीं जाते
लिये नहीं जाते
कुछ अधिकार

बस होते हैं
होते हैं कि
उनके होने से
सब होते हैं
बनाने वाले
देने वाले
लेने वाले

वे ऐसे जुड़ते हैं
क्षिति - भोजन
जल - प्यास
पावक - पेट
गगन -  एकांत
समीर - साँस

करते व्यापार
छीनना चाहते हो
वे अधिकार

कैसे छीनोगे उन्हें?
जो
बनाये नहीं गये
दिये नहीं गये
लिये नहीं गये

वे थे, हैं, रहेंगे
कि तुम्हारा होना भी
उनसे ही है
खुद को खुद से
छीन कर तो देखो
मिटा कर तो देखो

दबंगई गिरहकटी
कुछ मामलों में नहीं चलते
जैसे:
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर
भोजन, प्यास, पेट, एकांत, साँस