गुरुवार, 7 जुलाई 2016

भूख वर्तमान

मँगतों और देवतों के देश में
अकाल से मरते थे लोग,
खाते पीतों के बीच भूख से नहीं।

उकताए बुद्ध तक ने
भूख को न माना दुख।

हम उन्नति कर गए
किन्तु आज भी
पचा नहीं पाते
भूख से मरना।

पोस्ट मार्टम और तराजू लगाते हैं
पेट से ककोर ककोर निकालते हैं
पचास ग्राम भात।
वर्ल्ड के सामने,
बैंक के सामने
चिघ्घाड़ते हैं -
नहीं मरा कोई भूख से!

इतिहास में -
वृकोदर सहमता है
पृथा भूल जाती है आधा कौर।
द्रौपदी के अक्षय पात्र
नहीं बचता साग तक
यादव की भूख
अल्सर में तड़पती है।
दुर्वासाओं के शाप फलते हैं
और हम ऐसे
... इतिहास को झुठलाते
आगे बढ़ते हैं।